
नई दिल्ली, जेएनएन। सरकार ने दुनिया के सबसे बड़े सिविल सेवा सुधार को हरी झंडी दे दी है। राष्ट्रीय सिविल सेवा क्षमता विकास के कार्यक्रम को ‘मिशन कर्मयोगी’ नाम दिया गया है। इन सुधारों से सिविल सेवा कर्मचारियों को अपनी क्षमता के सतत विकास का मौका मिलेगा और सरकार को बदली जरूरत के मुताबिक जिम्मेदारी संभालने वाले अधिकारी मिल सकेंगे। सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के अनुसार, ‘लोगों की अपेक्षाओं पर खरे उतरने वाले अधिकारी तैयार करना इसका मुख्य लक्ष्य है।’
सिविल सेवकों को अधिक रचनात्मक बनाना है मकसद वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मिशन को सरकारी मानव संसाधन प्रबंधन (Human Resource management) में मौलिक सुधार करने वाला बताया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज मंत्रिमंडल के फैसले से सरकारी ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट प्रैक्टिस में मौलिक सुधार होगा। यह सिविल सेवा से जुड़े अधिकारियों की क्षमता बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचे के पैमाने और स्थिति का इस्तेमाल करेगा। एकीकृत सरकारी ऑनलाइन प्रशिक्षण मंच (आईजीओटी) मानव संसाधन प्रबंधन और निरंतर सीखने में मदद करेगा। मिशन कर्मयोगी का मकसद सिविल सेवकों को पारदर्शिता और तकनीक के जरिए अधिक रचनात्मक बनाना है।
कर्मचारियों की क्षमता के विकास का रास्ता तैयार प्रकाश जावडेकर ने इसे सरकारी सेवाओं के सुधार की दिशा में दूसरा बड़ा कदम बताया। उन्होंने कहा कि पहले कदम के रूप में ‘राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी’ गठित करके सरकारी सेवाओं में भर्ती प्रक्रिया को सरल बनाने का काम किया गया था, वहीं अब सरकारी नौकरी में आने के बाद कर्मचारियों की क्षमता के विकास का रास्ता तैयार किया गया है।
सरकार-जनता के बीच की खाई पाटने में मिलेगी मदद कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि अभी तक सिविल सेवा के अधिकारी नियमों में बंधे होते थे और उसी के तहत काम करते थे। नए सुधारों से अधिकारियों को नियमों के बंधन से मुक्ति मिलेगी और उन्हें पद की भूमिका के अनुरूप काम करने का मौका मिलेगा। जितेंद्र सिंह के अनुसार ‘रूल टू रोल’ तक के इस परिवर्तन से यह तय होगा कि किसी पद पर हमारा रोल क्या है। उन्होंने कहा कि इससे ‘सरकार और जनता के बीच की खाई पाटने’ में भी मदद मिलेगी।
प्रधानमंत्री मानव संसाधन परिषद’ करेगी निगरानी
‘मिशन कर्मयोगी’ की पूरी रूपरेखा बताते हुए जितेंद्र सिंह ने कहा कि इसके शीर्ष पर प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में ‘प्रधानमंत्री मानव संसाधन परिषद’ होगी जो पूरे मिशन के क्रियान्वयन की निगरानी करेगी। प्रधानमंत्री के अलावा कुछ केंद्रीय मंत्री, कुछ मुख्यमंत्री और देश-विदेश के विशेषज्ञ इस परिषद के सदस्य होंगे। ‘प्रधानमंत्री मानव संसाधन परिषद’ की सहायता के लिए एक ‘क्षमता विकास आयोग’ का गठन किया जाएगा। यह आयोग कर्मचारियों की क्षमता विकास के लिए सालाना योजना बनाने का काम करेगा। विभिन्न विभागों के अलग-अलग चल रहे ट्रेनिंग सेंटरों की निगरानी भी इसी आयोग के पास होगी।
‘आइगॉट-कर्मयोगी’ नाम से बनेगा प्लेटफार्म देश के दो करोड़ से अधिक सिविल सेवा कर्मियों को ऑनलाइन ट्रेनिंग की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए विशेष एकीकृत सरकारी ऑनलाइन प्रशिक्षण प्लेटफार्म तैयार किया जाएगा। ‘आइगॉट-कर्मयोगी’ के नाम से इस प्लेटफार्म पर देश-दुनिया की बेहतरीन प्रशिक्षण सामग्री उपलब्ध होगी। कर्मचारी इस प्लेटफार्म पर अपनी इच्छानुसार प्रशिक्षण सामग्री चुनकर अपनी क्षमता का विकास कर सकते हैं।
432 रुपये सालाना फीस लेगी एसपीवी सरकारी कर्मचारियों की क्षमता को मापने के लिए यहां टेस्ट की भी सुविधा होगी। इस पूरे प्लेटफार्म को चलाने का काम एक कंपनी करेगी जिसे ‘विशेष प्रयोजन व्हीकल’ (एसपीवी) कहा गया है। गैर-लाभकारी कंपनी के रूप में काम करने वाली एसपीवी कौशल विकास का प्रशिक्षण देने के लिए 432 रुपये सालाना की मामूली फीस भी लेगी। जितेंद्र सिंह के अनुसार विभिन्न विभाग खुद ही अपने कर्मचारियों के कौशल विकास के लिए फीस दे सकते हैं।
510 करोड़ रुपये होंगे खर्च वर्ष 2020-21 से 2024-25 के बीच पांच साल में इस मिशन के तहत केंद्र के 46 लाख कर्मचारियों को कवर करने के लिए 510 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। जितेंद्र सिंह ने उम्मीद जताई कि राज्य सरकारें भी अपने कर्मियों के कौशल विकास के लिए ‘आइगॉट-कर्मयोगी’ प्लेटफार्म का उपयोग कर सकेंगी। भारत ही नहीं, दुनिया के अन्य देशों को भी उनके कर्मचारियों के कौशल विकास के लिए इस प्लेटफार्म का उपयोग करने की अनुमति दी जा सकती है।
पीएम के मसूरी दौरे में पड़ी थी नींव जितेंद्र सिंह के अनुसार, 2017 में मसूरी स्थित सिविल सेवा अकादमी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे के दौरान इन सुधारों की नींव पड़ी थी। उनके अनुसार किसी प्रधानमंत्री ने 42 साल बाद इस अकादमी का दौरा किया था। दो दिन तक प्रशिक्षकों और प्रशिक्षुओं के साथ प्रधानमंत्री की व्यापक चर्चा हुई। उसके बाद मौजूदा ट्रेनिंग को वक्त की जरूरतों के मुताबिक अत्याधुनिक और भारतीय संस्कृति व परंपरा के अनुरूप बदलने का फैसला किया गया। इसके बाद पायलट प्रोजक्ट के रूप में ‘आरंभ’ नाम से इसकी शुरुआत की गई थी। इसके अनुभवों को आधार बनाते हुए पूरे मिशन की रूपरेखा तैयार की गई।