
रेलवे ने बंगले का प्यून हटाने का आदेश क्या जारी कर दिया, साहबों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। आव देखा न ताव सीधे रेलवे बोर्ड के चेयरमैन को ही चिट्ठी लिख डाली। चिट्ठी में न सिर्फ फैसला बदलने का दबाव बनाया बल्कि खुद को तो आइएएस अधिकारियों से भी ज्यादा व्यस्त बताया। कह दिया कि रेल अधिकारी तो 24 घंटे ड्यूटी पर रहते हैं। सुबह उठ कर पूरी रात के परिचालन की स्थिति से रूबरू होना, कंट्रोल रूम से फीडबैक लेना और फील्ड अफसरों और कर्मचारियों को निर्देश जैसे तमाम काम काज रेलवे के टेलीफोन से होते हैं। इसके लिए टेलीफोन अटेंडेंट सह प्यून यानी घरेलू सेवक बेहद जरूरी है। यहां तक कि फील्ड में जाने के दौरान फाइल ढोने के लिए भी सेवक जरूरी हैं। अब सुनने को मिल रहा है कि अफसरों की यूनियनबाजी कामयाब हो गई है। हुक्म बजानेवाली प्रथा बनी रहेगी।
कागज पर गाडिय़ां ढो रहीं कूड़ा रेलवे अपनी आर्थिक सेहत सुधारने के लिए कई तरह के जतन कर रही है। अफसरों के लाव-लश्कर के साथ सैर-सपाटे पर कैंची चलाने से लेकर कर्मचारियों के रात्रि भत्ते तक रोके जा रहे हैं। मगर जब सफाई की बात हो तो रेलवे खर्च करने में पीछे नहीं है। खुद ही देख लीजिए। धनबाद स्टेशन की सफाई के लिए रेलवे अब तक चार करोड़ 20 लाख खर्च करती थी। अब सफाई का खर्च बढ़कर 14 करोड़ 50 लाख पहुंच गया है। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले का टेंडर तीन साल का था। इस बार टेंडर चार साल के लिए दिया गया है। मैकेनाइज्ड क्लीनिंग के नाम पर सफाई का खर्च साढ़े तीन गुना बढ़ा है। कूड़ा ले जाने को रोजाना गाडिय़ों का खर्च भी मिल रहा है। रेलवे के कर्मचारी कह रहे हैं कि गाडिय़ां सिर्फ कागज पर चल रही हैं। हकीकत कुछ और है।
कोराना जांच को ठेलमठेल वो 18 अप्रैल था जब रेलवे में पहली बार कोरोना संक्रमित कर्मचारी मिले थे। उसके मिलने के बाद से ही अगर सजगता बरती गई होती तो आज जैसी परिस्थिति नहीं होती। जब हालात बेकाबू हो गए तब कर्मचारियों की मेडिकल जांच शुरू हुई। जांच की व्यवस्था भगवान भरोसे ही है। अब पिछले दिनों गोमो में जो हुआ उससे तो कोरोना से बच पाना मुश्किल ही है। गोमो के स्वास्थ्य केंद्र में कोरोना जांच की व्यवस्था की गई। खबर मिलनी थी कि पूरी रेल कॉलोनी कतार में खड़ी हो गई। ऐसी फौज उमड़ी कि ठेलमठेल शुरू हो गई। शारीरिक दूरी पालन करना तो दूर रेलकर्मी और उनका परिवार एक-दूसरे से जोर आजमाइश करते दिखे। पहले हम की आवाज बुलंद करते हुए। यहां भीड़ नियंत्रण का कोई बंदोबस्त नहीं था। ऐसा तब है जब महकमे के मुखिया खुद ही संक्रमित हैं। कोरोना कई जिंदगियां भी छीन चुका है।